क़िस्सा-ए-कंज़्यूमर: बिन Google सब सून उर्फ कयामत का ट्रेलर
भई टेक्नोलॉजी ही तो है, क्या गारंटी है? जब अमेरिका की मशहूर साइबर सिक्योरिटी एजेंसी साइबर आई में हैकर भाई लोग सेंध लगा सकते हैं तो फिर औरों की क्या बिसात?
दरअसल, हम कभी सोचते ही नहीं कि अगर कभी ये सब अचानक बंद हो गए तो क्या होगा? आखिर बंद हुआ न ! झटका लगा न !
दरअसल, हम कभी सोचते ही नहीं कि अगर कभी ये सब अचानक बंद हो गए तो क्या होगा? आखिर बंद हुआ न ! झटका लगा न !
सोमवार 14 दिसंबर 2020 की शाम मेरी 11 साल की बेटी भागती हुई आई- ‘पापा देखो ना, मेरा यूट्यूब नहीं चल रहा!’ मैंने उसका टैबलेट चेक किया, कोई Error बता रहा था. अपना फोन देखा, यूट्यूब खुला ही नहीं. मेरा ध्यान अपने न्यूज वाले व्हॉट्सऐप ग्रुप की तरफ गया. तब तक वहां धड़ाधड़ कई मैसेज गिर चुके थे कि जीमेल, यूट्यूब सब डाउन हो गया है. यूट्यूब पेज पर एक बंदर अंग्रेज़ी में मुनादी कर रहा था- ‘कुछ गड़बड़ हो गई है’ और जीमेल पर संदेश आ रहा था- ‘ऊप्स, सिस्टम में कुछ प्रॉब्लम आ गई है.’ गूगल की बाकी सर्विसेज के साथ भी जनता ऐसे ही जूझ रही थी. ये खबर जिस तेजी से फैली उसे बताने के लिए ‘जंगल में आग’ वाला मुहावरा बहुत ही दुबला है. यू समझिए कि इंटरनेट की दुनिया में जैसे भूचाल आगया. देखते ही देखते ट्विटर पर #YouTubeDown और #GoogleDown ट्रेंड करने लगे. आनन-फानन में कंपनी ने बयान जारी किया. लोगों को भरोसा दिलाने की कोशिश की कि ऑल इज़ वेल, लेकिन वो 40-45 मिनट लाखों करोड़ों यूजर्स के लिए किसी ‘नाइटमेयर’ से कम नहीं गुजरे.
तेरे नाम से शुरू, तेरे नाम से ख़तम...विद्या कसम
फिल्म शोले में एक डायलॉग है- ‘गब्बर के ताप से तुम्हें सिर्फ एक आदमी बचा सकता है, खुद गब्बर.’ यूट्यूब को क्या हुआ, ये सवाल लोग गूगल से ही पूछ रहे थे. लेकिन हर सवाल का जवाब देने वाले परम ज्ञानी गूगल बाबा इस बार खामोश थे. मेरी बेटी की परेशानी तो सिर्फ इतनी थी कि वो जस्टिन बीबर का वीडियो नहीं देख पा रही थी. लेकिन ज़रा उन लाखों करोड़ों लोगों की फिक्र का अंदाजा लगाइये जिनकी जिंदगियां यूट्यूब के भरोसे चल रही हैं. याद है आपको टिक-टॉक बंद होने पर कैसी अफरा-तफरी मच गई थी? कितने स्टार रातों-रात बेरोज़गार हो गए थे? फिर ये तो यूट्यूब है. खुद गूगल के आंकड़े बताते हैं कि यूट्यूब पर 1 दिन में इतने वीडियो अपलोड होते हैं कि आप देखने चलें तो 45 साल लग जाएंगे. कितने सितारे, कितने संगीतकार, कितने फाइनेंशियल एडवाइजर, कितने पत्रकार, कितने गैजेट गुरु, कितने टिप्स एंड ट्रिक्स बताने वाले जानकार होंगे जिनके लिए लाइफलाइन है यूट्यूब. उनकी पहचान, उनकी कमाई, उनकी मसरूफियात सब इसी से जुड़ी हुई हैं.
TRENDING NOW
Google नहीं तो ज़िंदगी में और क्या रह जाएगा
दिमाग में कोई सवाल हो तो हम गूगल से पूछते हैं, कहीं पहुंचना है तो गूगल मैप का इस्तेमाल करते हैं, ई-मेल के लिए हर किसी के पास जीमेल है, हमारा हेल्थ डेटा, पेमेंट सर्विसेज तक गूगल के ऐप्स मैनेज कर रहे हैं. मतलब ये गूगल सर्च, जीमेल, यू-ट्यूब, गूगल मीट, गूगल प्ले, गूगल ड्राइव, गूगल डॉक्स, गूगल पे, गूगल मैप्स, गूगल क्लाउड वगैरह हमारी रोज़मर्रा की जिंदगी से ऐसे एकाकार हो चुके हैं कि हम इन्हें अजर-अमर मानकर चलते हैं. हमें लगता है कि ये तो हमारे जन्म-जन्मांतर के साथी हैं. हम अपना सारा क्रिएएशन, अपने सारे सीक्रेट, अपनी सारी प्लानिंग इन्हीं के पेट में भरते जाते हैं. डिपेंडेंसी का आलम ये है कि कई लोग तकरीबन घंटे भर अंधेरे में बैठे रहे क्योंकि उनके घर की लाइट्स, कैमरा, वाई-फाई तक सब कुछ गूगल असिस्टेंट जैसे स्मार्ट डिवाइस से कंट्रोल होती हैं. दरअसल, हम कभी सोचते ही नहीं कि अगर कभी ये सब अचानक बंद हो गए तो क्या होगा? आखिर बंद हुआ न ! झटका लगा न !
साइबर सिक्योरिटी मिथ्या है, डिजिटल संसार क्षणभंगुर है!
भई टेक्नोलॉजी ही तो है, क्या गारंटी है? जब अमेरिका की मशहूर साइबर सिक्योरिटी एजेंसी साइबर आई में हैकर भाई लोग सेंध लगा सकते हैं तो फिर औरों की क्या बिसात? जाने-माने साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट प्रशांत माली तो गूगल के इस ट्रेलर को साइबर वॉरफेयर की शुरुआत मान रहे हैं, इसमें चीनी हैकरों का हाथ होने की आशंका जता रहे हैं. खुद गूगल ने भी भले ही इसे टेक्निकल ग्लिच बताया हो लेकिन साथ ही ये भी कहा है कि हम पूरे मामले की गहराई से जांच कर रहे हैं. आखिर किस बात की जांच भैया? आप तो सर्वशक्तिमान हैं! बहरहाल, प्रशांत माली जी कहते हैं कि आज के दौर में साइबर सुरक्षा एक भ्रम है, और हम सब भ्रम में जी रहे हैं. इस भ्रम से जितना ज्यादा और जितनी जल्दी बाहर निकल जाएं, उतना ही हम सबका भला होगा.
Google के झटके के बाद भी नहीं संभले ऊपरवाला ही मालिक है
देखिए अपने आस-पास फैली टेक्नोलॉजी की जिस दुनिया पर हम अंधा भरोसा करते हैं, उसका पल भर में क्या हश्र हो सकता है इसकी बानगी तो हमने देख ली. अब बात हो जाए सबक की. तो काम दो लेवल पर हो सकता है. एक सरकार और सरकारी एजेंसियों के लेवल पर और दूसरा हमारे अपने लेवल पर. जानकार कहते हैं कि गूगल जैसी विदेशी कंपनियों को अपने देश में इतना बड़ा बनने ही नहीं देना चाहिए कि वो हमारी जिंदगियों को कंट्रोल करने लगें. इनका विकल्प तलाशना होगा. स्वदेशी सर्च इंजन बनाने होंगे. इंटरनेट सर्वर्स को लोकलाइज करना होगा. चीन कर चुका है. रूस भी इसी राह पर है. हमें भी ये जल्द से जल्द कर डालना चाहिए.
लेकिन ये तो राज-काज है, होते होते होगा. तब तक हम क्या करें?
जानकार बता रहे हैं कि ये जो कुछ 14 दिसंबर को हुआ है उसे हल्के में मत लीजिए. एहतियात के तौर पर अपने पासवर्ड्स बदल डालिए, 2 मिनट का काम है. दूसरी सलाह ये है कि कोशिश कीजिए जितना भी जरूरी डाटा ऑनलाइन पड़ा है उसका ऑफलाइन बैक-अप भी रखते चलिए. अपने लोकल कंप्यूटर पर या फिर एक्सटर्नल हार्ड डिस्क पर. मिसाल के तौर पर अपने पर्सनल फोटो, वीडियो कहीं ऑफलाइन सेव रखें. ऐसा न हो कि अचानक गूगल या फेसबुक क्रैश हो गए तो लुट गए, बरबाद हो गए वाली नौबत आ जाए. एक बात और, बहुत से लोग अपने ई-मेल पर, ड्राफ्ट में या गूगल डॉक्यूमेंट जैसी जगहों पर अपने लॉग-इन आईडी और पासवर्ड्स लिख कर रखते हैं. ये जोखिम को दावत देने जैसा है. जीमेल या गूगल ड्राइव से पर्सनल और गोपनीय जानकारियां दूर रखें. अपनी साइबर सुरक्षा को लेकर हम खुद जितने सजग और सतर्क होंगे हमारे लिए उतना ही अच्छा होगा.
(लेखक ज़ी बिज़नेस हिन्दी डिजिटल के ए़डिटर हैं)
09:59 AM IST